यह प्रवचन श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के यूट्यूब चैनल से लिया गया है, जिसमें उन्होंने अनन्य भक्ति का महत्व और उपमन्यु ऋषि की संपूर्ण कथा सुनाई है। साथ ही श्री प्रेमानंद महाराज जी ने बताया कि किसकी पूजा करनी चाहिए |
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नैना झा जी का प्रश्न: क्या अलग-अलग भगवान को पुकारने से देवता नाराज होते हैं?
नैना झा जी ने राधे-राधे कहकर महाराज जी से पूछा: “महाराज जी, जब मैं मुश्किल में होती हूं तो कभी शिव जी से बोलती हूं, कभी दुर्गा जी से बोलती हूं, कभी राम जी से बोलती हूं — ताकि काम कहीं तो बन जाए। ऐसा तो होता है ना?”
उन्होंने आगे पूछा: “पर महाराज जी, ऐसे अलग-अलग भगवान को बदलने से कोई देवता नाराज तो नहीं हो जाएगा? पहले मैंने उनसे बोली, फिर अभी उससे। तो क्या काम भी पूरा हो गया? क्या काम तो नहीं हुआ?”
महाराज जी ने कहा: “महाराज जी, कैसे हो जाएगा? शिव जी को पुकारा तो वो देखने लगे कि पहले दूसरे को पुकारा। तो शिव जी ने देखा कि वो दूसरे के पास जा रहे हैं।“
प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी का उदाहरण: एक दरवाजे पर पड़े रहने वाले कुत्ते की कहानी
महाराज जी ने समझाया: “देखो, हम एक आपको उदाहरण बताते हैं। अगर एक कुत्ता इस दरवाजे में पड़ा रहे, कहीं जाए ना, तो उसका ना जाना हमको इतना प्रेरित करेगा कि वो एक दिन भूखा भले रह जाए। दूसरे दिन से भूखा नहीं रहेगा।”
“रोज दरवाजे पर निकलने पर जब हमको पता चलेगा कि यह कहीं किसी के दरवाजे नहीं जाता, केवल मेरे ही दरवाजे पर पड़ा रहता है, तो उसका पड़ा रहना हमारे ऊपर भारी हो जाएगा। और हमारा कर्तव्य बन जाएगा कि यार इसको रोटी दे दो।”
“जब कहीं जाता है और अगर यह पता है कि चार दरवाजे पर जाता है तो भूखा रह जाएगा। क्योंकि वो समझेगा उनके दरवाजे में मिल गया होगा। वो समझेगा उनके दरवाजे में मिल गया होगा।”
अनन्य भक्ति का महत्व: एक ही भगवान को पकड़ लो – श्री प्रेमानंद महाराज जी
महाराज जी ने आगे कहा: “तो इसीलिए हमको भगवान की अनन्य भक्ति करना चाहिए। किसी एक भगवान को पकड़ लो। भगवान बहुत नहीं।”
तत्व में एक ही भगवान है – श्री प्रेमानंद महाराज के भजन
“तत्व में एक ही भगवान है। अवतार में, रूप में, लीला में अनेक रूप धारण किए हुए हैं। और ये सब संसार रूप भी भगवान ही है। तो हमें एक रूप भगवान का पकड़ना चाहिए।”
गोस्वामी तुलसीदास जी का दोहा
महाराज जी ने गोस्वामी तुलसीदास जी की वाणी सुनाई:
“जैसे गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं — बने तो रघुवर ते बने और बिगड़े तो भरपूर तुलसी। औरन ते बने ता बनवे पे धुर।“
इसका अर्थ है: “यदि बने तो भगवान श्री राम के बनाए बने। अगर किसी और भगवान के बनाए बने तो उसमें धूल पड़े, मुझे नहीं चाहिए। तभी अनन्यता आएगी।”
उपमन्यु ऋषि की संपूर्ण कथा: अनन्य भक्ति का आदर्श उदाहरण
महाराज जी ने कहा: “एक हम आपको उदाहरण बताते हैं महाभारत का। उपमन्यु नाम के एक ऋषि थे।”
उपमन्यु ऋषि का परिचय और उनकी स्थिति
“उनके पिता पहले ऋषि मुनि — सब जंगल में वास करते थे। गृहस्थ होते हुए भी वह कभी किसी से दान नहीं लेते थे।”
दूध पीने की इच्छा और माता का उपदेश
“तो एक दिन उपमन्यु जी उस ऋषि के घर गए। बालकों के साथ खेलते हुए जिनके जजमान थे, तो वहां उनको सुंदर दूध पीने को मिला जो कभी जीवन में नहीं मिला था। क्योंकि जंगली फल मूल से गुजारा करने वाले ऋषि थे।”
“उपमन्यु जी ने अपनी मां को आकर कहा: ‘मुझे दूध दीजिए जैसा मैंने उनके घर में पिया।'”
“तो उन्होंने कहा: ‘तुम्हारे पिता किसी जजमान का दान नहीं लेते, इसलिए हमारे पास ना गाय है, ना सुविधा है, ना दूध दे सकते हैं हम आपको।'”
जंगली चावल का पानी
“वह हट कर लिए तो एक जंगली चावल होता है। उसको पीस के उन्होंने पानी में पिलाया कि लो।”
“तो उन्होंने कहा: ‘नहीं, यह दूध नहीं है।'”
माता का आदेश: भगवान शंकर की आराधना करो
“तो उन्होंने कहा: ‘अगर तुम्हें दूध दही पान करना है तो भगवान शंकर की आराधना कर।’ बड़े आवेश में कहा: ‘और जो चाहेगा तुझे प्राप्त होगा।'”
“तो उन्होंने कहा: ‘मां, फिर मुझे आराधना का नियम बताओ।'”
“तो उन्होंने नियम बताया और पंचाक्षरी मंत्र उनको दिया।”
10,000 वर्ष की कठोर तपस्या
वो 10,000 वर्ष तक दाहिने पैर के अंगूठे केवल खड़े होकर पंचाक्षरी मंत्र, हाथ उठा के जपते रहे। 10,000 वर्ष तक भगवान शिव प्रसन्न हो गए। बहुत — वैसे तो आशुतोष है और डर दानी, बड़े शीघ्र प्रसन्न होने वाले।
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भगवान शिव की परीक्षा: देवराज इंद्र के रूप में प्रकट होना
महाराज जी ने बताया: “अब उन्होंने परीक्षा ली। इष्ट परीक्षा भी लेता है।”
इंद्र और देवताओं का वेश धारण
“उन्होंने परीक्षा ली — वो देवराज इंद्र बन गए और नंदिकेश्वर एरावत हाथी बन गए। और जितने शिव पार्षद थे, वह सब देवता बन गए। और अंबाजी भगवती पार्वती जी इंद्रानी बन गए।”
वरदान मांगने का आदेश
“और उनका वरम — नेत्र खोलो और वरदान मांगो।”
“उन्होंने नेत्र खोला, देखा — ये तो देवराज इंद्र का समाज है।”
“उन्होंने कहा: ‘जो तुम्हारी इच्छा हो, मांग लो।'”
उपमन्यु की अनन्यता: देवराज इंद्र को मना करना
“उन्होंने प्रणाम किया और कहा: ‘देवराज इंद्र और समस्त देव समाज, आपके चरणों में प्रणाम है। पर आप जाइए। मुझे आपसे नहीं चाहिए। मुझे भगवान शिव से चाहिए।'”
देवराज इंद्र का उपहास और उपमन्यु की चेतावनी
“क्योंकि भगवान शिव ही थे, तो उपहास करने लगे।”
“तो उनका — सावधान! मैंने ना आपको बुलाया है, ना मैंने आपसे मांगा है। आप स्वयं आए हो तो हम आपको नमस्कार करके वापस भेज रहे हैं। पर यदि आप हमारे इष्ट की निंदा करेंगे तो आप ऐसा ना समझिए — हमारे इष्ट के मंत्र में इतनी ताकत है कि मैं एरावत सहित तुम्हें अभी भस्म कर दूंगा।”
“अब क्योंकि भगवान शिव थे तो डरने वाले तो थे नहीं। फिर उपहास करने लगे शिव का।”
अघोर मंत्र का प्रयोग और नंदिकेश्वर का प्रकट होना
महाराज जी ने बताया: “तो एक अघोर मंत्र है भगवान शिव का। हम लोग जब सन्यास मार्ग में थे तो उस मंत्र का परिचय हमें प्राप्त है। अगर यह सिद्ध हो जाए तो जो चाहे वो सब कर सकता है।”
जल में अघोर मंत्र का संधान
“तो उन्होंने तुरंत हाथ में जल लिया। जे अघोर मंत्र का संधान किया। तो नंदिकेश्वर प्रकट हो गए और उस जल को रोक लिया।”
नंदिकेश्वर की चेतावनी
“और कहा: ‘इष्ट मंत्र से इष्ट पर प्रहार करते हो?'”
भगवान शिव का प्रकट होना और शरणागति
“तब देखा तो भगवान शंकर, पार्वती और समस्त पार्षद गण!”
उपमन्यु की शरणागति
“तो कहा: ‘त्राहिमाम शरणागत वत्सल भगवान शिव, रक्षा करो! हमने तो देवराज इंद्र समझकर प्रहार किया।'”
भगवान शिव का उत्तर
“बोले: ‘नहीं वत्स, मैं तुम्हारी परीक्षा लेने आया था कि देखें — तुम एक निष्ठ हो या केवल अपनी चाह पूर्ति करने वाले। जैसे आपने प्रश्न किया।'”
भगवान शिव का वरदान: क्षीर समुद्र से दूध और अमृत
“अब बोलो, क्या चाहते हो?”
“तो उनका — जो हमारी कामना थी, उसकी पूर्ति होनी चाहिए।”
वरदान की घोषणा
“तो उनका — क्षीर समुद्र से, जिसमें भगवान सहन करते हैं, उस क्षीर समुद्र से रोज तुम्हें दूध आएगा। और अजर रस, अमरत्व। और जब तुम हमें याद करोगे, मैं प्रकट हो जाऊंगा।“
निष्कर्ष: अनन्य निष्ठा से ही वस्तु की प्राप्ति होती है
महाराज जी ने कहा: “तो अनन्य निष्ठा से ही वस्तु की प्राप्ति होती है।”
अलग-अलग भगवानों में भटकना व्यर्थ है
“यह जो के — लक्ष्मी जी से बना तो बना, नहीं तो पार्वती जी से बना तो बना, फिर भद्रकाली से बना के — कोई ना कोई तो सुन ही लेगा — कभी तो कोई नहीं सुनेगा।”
राधा नाम, हनुमान जी, या शिव जी — कोई एक चुन लो
“महाराज जी, हमारी स्थिति ऐसी है कि जैसे आपसे राधा नाम सुना कि एक केवल राधा नाम जपिए और सारी बात बन जाएगी। तो राधा — कहीं हनुमान जी का सुना कि मतलब भूत प्रेत निकटना है। फिर शिव जी का सुना कि जल चढ़ाओ तो ऐसा।”
तत्व एक है, एक से ही काम बनेगा
“उसकी एक — देखो, तत्व एक है तो एक से ही काम बन जाएगा। जब तक एक में नहीं लगोगे तब तक आध्यात्मिक की उन्नति नहीं होगी। आप ये पक्का समझ लीजिए।”
तुलसीदास जी की वाणी: एक भरोसो एक बल
महाराज जी ने कहा: “एक भरोसो, एक बल, एक आस विश्वास। एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास।“
एक जगह लग जाओ
“एक जगह कहीं लग जाओ। एक जगह लग जाओ।”
राधा राधा कहो तो सब विघ्न शांत हो जाएंगे
“अगर आप राधा राधा कहते हो तो सारे विघ्नों की शांति और समस्त कामनाओं की पूर्ति हो जाएगी। चुपचाप लगो।”
राम राम, शिव शिव — सभी से वैसे ही लाभ
“अगर आप राम राम कहते हो तो वैसे ही लाभ प्राप्त होगा। आप शिव शिव कहते हैं तो वैसे ही लाभ प्राप्त होगा।”
भगवान के अनंत नाम और रूप हैं, पर एक को पकड़ो
महाराज जी ने समझाया: “हमारे भगवान के अनंत नाम है। अनंत रूप है। हम अनंत रूपों की आराधना नहीं कर सकते। किसी एक रूप को पकड़ो। किसी एक नाम को पकड़ो।”
गुरु का महत्व: गुरु द्वारा दिया नाम ही सही है
“इसीलिए गुरु बनाया जाता है कि गुरुदेव जो नाम रूप मंत्र दे देंगे, वही हम भगवान की आराधना करेंगे। तभी सफलता प्राप्त होती है।”
प्रारंभ में सबकी भक्ति ऐसी होती है, पर एक में आना पड़ेगा
महाराज जी ने कहा: “तो अब प्रारंभ में तो वैसे सबकी भक्ति ऐसी होती है। लेकिन अगर आप वास्तविकता में लाभ लेना चाहते हो तो आपको एक में आना पड़ेगा।”
किसी एक भगवान के रूप को चयन कर लो
“किसी एक भगवान के रूप को चयन कर लो। एक नाम चयन कर लो। और उसी से बेड़ा पार हो जाएगा।”
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