तीसरी आँख खोलने का उपाय

तीसरी आँख खोलने का असली रहस्य: प्रेमानंद महाराज जी का खुलासा जानकर दंग रह जाएंगे!

सबसे पहले अगर आप इस लेख में आए है तो आप अपने मन को शांत कीजिए, आप 108 बार श्री राधा नाम का जप कीजिए तभी आप आगे इस लेख को पढ़े|

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अगर आप श्री राधा नाम जप नहीं कर सकते तो आप अपने इष्ट देव (महादेव शिव , श्री हरी बिष्णु , राम या सीता-राम) इसके अलावा मंत्र (ॐ नमः शिवाय) का जप भी कर सकते है|

तीसरी आँख खोलने का उपाय
तीसरी आँख खोलने का उपाय

श्री प्रेमानंद महाराज जी के सान्निध्य में साधिका रिचा ने प्रश्न किए

रिचा मन के गहरे द्वंदों को साझा करते हुए पूछा,
महाराज जी, मैं पिछले एक साल से आपका अनुसरण कर रही हूँ। नाम जप करती हूँ, भजन करती हूँ, लेकिन मन में एक बात चलती है की तीसरी आंख खोलने का सरल उपाय क्या है !

श्री प्रेमानंद जी महाराज (Premanand ji maharaj) का उत्तर

सबसे पहले अपने दो भौतिक नेत्रों को पवित्र तो करो। भगवान की भावना से अपने पति, सास-ससुर और बच्चों को देखो। यह बात वेदों में भी स्पष्ट है — ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।’

अर्थात सभी के लिए सुख और स्वास्थ्य की कामना करना। जब तुम्हारा मन पवित्र होगा, तभी आध्यात्मिक रूप से उच्च स्तर पर ‘तीसरी आंख‘ खुल पाएगी।

लेकिन अभी किसी के लिए भी आज्ञा चक्र खोलने की सामर्थ्य नहीं है। भगवान कृपा करे तो हो सकती है। क्योंकि आप सब कितने घंटे पद्मासन में बिना हिले बैठ सकते हो?

अगर आप तीन घंटे बिना हिले जो पद्मासन में बैठ सके, और भगवन की कृपा हो तो आज्ञा चक्र खुल सकता है।

योग, ब्रह्मचर्य, और नाम जप के बिना यह संभव नहीं। भगवद् गीता में कहा गया है – ‘योग कर्मसु कौशलम्

यानी योग ही कर्मों की सफलता है। नाम के जप में मन की वृत्तियों को स्थिर करना बहुत कठिन है| लेकिन जब नाम जप दिल से किया जाता है, तो मन स्वच्छ होता है और क्रोध, अहंकार जैसे विकार दूर होते हैं।

शिव पूजा (mahadev shiv) की महत्ता को भी महाराज जी ने गहराई से बताया।

सोमवार का व्रत रखो, रुद्राभिषेक करो और बेलपत्र अर्पित करो। यह पुराणों में भी वर्णित है कि ‘शिव भक्तानां सर्वदा हितकारी।’ शिव की कृपा से वैवाहिक सुख, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार और मन को शांति प्राप्त होती है।

साधिका रिचा ने दूसरा प्रश्न किया

गुरुदेव क्रोध और अहंकार मन में हमेशा रहती है। इससे छुटकारा कैसे पाए|

प्रेमानंद जी महाराज ने कहा

क्रोध और अहंकार के लिए सर्वोत्तम औषधि है सत्संग और गुरु भक्तिगुरु के प्रति श्रद्धा और सेवा से हृदय में प्रेम की ज्योति प्रज्वलित होती है। जैसे भगवद् गीता में कहा गया है, ‘श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।’ श्रद्धा के बिना ज्ञान संभव नहीं।

प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन यही सिखाते हैं कि सेवा और नाम जप बिना अधूरी है। अपना हर कर्म भगवान के लिए समर्पित करो। यह भाव मन को निर्मल करता है और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।

नाम जप के जरिए मन के विकार धीरे-धीरे मिटते हैं और मन निर्मल होकर भगवान के निकट पहुंचता है। कहावत है ‘नाम जप ही शाश्वत उपाय।’

इस प्रकार, भक्तिभाव से भरी सतत साधना, सेवा और गुरु की कृपा से जीवन का हर अंधकार दूर होता है। यह मार्ग सरल तो नहीं, किंतु प्रेमानंद जी महाराज के उपदेशों का सार यही है कि धैर्य रखो और सच्चे मन से साधना करो।

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